रामरावन युद्ध राम के लिए आसान नहीं था
कौरव पांडव देव असुर युद्ध भी ऐसा ही था !
इसीलिए आज का धर्म युद्ध भी ऐसा ही रहेगा
यारों !! लेकिन जीत हमारी जरूर होगी !!
अधर्म का काला चेहरा देखकर हम डरेंगे नहीं
श्रेष्ट धर्म का सहारा लेकर हम लड़ेंगे सही
अधर्म का नाश जरूर करना है हमको
धर्म का भगवा ध्वज लहराना है हमको
हम सदियों से लड़ते -सहते आये हैं
लेकिन आज लगता है इसका अंत आया है
आप जैसा शूरवीर हमारे पास है
अब जीत आज नहीं तो कब होगी रे
हम हिन्दू है , हम इस धरती के पुत्र है
जब हमारी माँ कष्ट संकट मे है
तब हम सो नहीं सकते, उठो यारो
जीत हमारी है, पर लड़ना जरूरी है
वन्दे मातरम् हमारा मंत्र है
राष्ट्र भक्ति हमारी ताकत है,
हम राष्ट्र के लिए हैं, स्वार्थ छोडो
उठो यारो, अब लड़ने का समय है
3 comments:
धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है । धर्म के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । धर्म पालन में धैर्य, विवेक, क्षमा जैसे गुण आवश्यक है ।
शिव, विष्णु, जगदम्बा के अवतार एवं स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । लोकतंत्र में न्यायपालिका भी धर्म के लिए कर्म करती है ।
धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस परिस्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
अधर्म- असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म है । अधर्म के लिए कर्म करना भी अधर्म है ।
कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म (किसी में सत्य प्रबल एवं किसी में न्याय प्रबल) -
राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मंत्रीधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक एवं परमात्मा शिव की इच्छा तक रहेगा ।
धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर के किसी रूप की उपासना, दान, तप, भक्ति, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है ।
धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है ।
वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना किसी भी मनुष्य के लिए कठिन कार्य है । इसलिए मनुष्य को सदाचार के साथ जीना चाहिए एवं मानव कल्याण के बारे सोचना चाहिए । इस युग में यही बेहतर है ।
धर्म सकर्म में होता है । किया गया कर्म या किया जाना वाला कर्म, न्याय एवं नीति की दृष्टि से उचित लगता है तब सत्य को छुपाना या असत्य का सहारा लेना उचित है ।
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